Aditya Hridaya Stotra भगवान सूर्यदेव की प्रार्थना की पुस्तक है | हमारे द्वारा इस आर्टिकल में Aditya Hridaya Stotra PDF की महिमा एवं सभी भाषाओ में डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध कराया गया है | यदि कोई भी Aditya Hridaya Stotra PDF को डाउनलोड करने इच्छुक है तो निचे वो जो भाषा में डाउनलोड करना चाहता है वो भाषा में डाउनलोड लिंक निचे दी गयी है | Aditya Hridaya Stotra PDF Download लिंक पर क्लिक करके वो फ्री में आदित्य हृदय स्तोत्र का सम्पूर्ण पथ को डाउनलोड कर सकता है |
आदित्य हृदय स्तोत्र Wikipedia
आदित्य हृदय स्तोत्र सूर्यदेव की प्रार्थना है | ये प्रार्थना राम और रावण के बिच जो महायुद्ध हुआ था उसके पहले महर्षि अगस्त्य ने राम को सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए इस प्रार्थना करने का सुझाव दिया था |
आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे PDF
Aditya Hridaya Stotra का पूजन एवं पाठ तब किया जाता है जब किसी की राशि (जन्म कुंडली) में सूर्य-ग्रहण लगा हो। इस परस्थिति में अच्छे परिणाम के लिए, नियमित रूप से कर्मकाण्ड (पाठ,व्रत हवन आदि) करने होंगे। आदित्य हृदय स्तोत्र मन की शांति, आत्मविश्वास और समृद्धि देता है। इस प्रार्थना के पाठ से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं। आदित्य हृदय स्तोत्र पूजा विधि से अनगिनत लाभ होते हैं। जिसके लिए आदित्य हृदय स्तोत्र के जप, पूजा पाठ हवन और व्रत रखे जाते हैं।
आदित्य हृदय स्तोत्र के नियम
- रविवार को उषाकाल में इसका पाठ करे |
- नित्य सूर्योदय के समय भी इसका पाठ कर सकते है |
- पहले स्नान करे और सूर्य को अर्ध्य दे |
- बाद में सूर्य के समक्ष ही इस स्त्रोत का पाठ करे |
- पाठ के पश्चात सूर्य देव का ध्यान करे |
- जो लोग आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करे वो लोग रविवार को मासाहार, मदिरा तथा तेल का प्रयोग न करे |
- संभव हो तो सूर्यास्त के बाद नमक का सेवन भी न करे |
आदित्य हृदय स्त्रोत पाठ करने से ग्रहों पर होने वाले प्रभाव
- जातक ऊर्जावान बनता है |
- सोया हुआ भाग्य भी जाग जाता है |
- मान सम्मान,यश कीर्ति में बढ़ावा होता है |
- संकटों में लाभ मिलता है।
- मन की शांति, आत्मविश्वास और समृद्धि देता है।
- जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं |
- रोग और आंखों की कमजोरी, शत्रुओं से भय और सभी चिंताएं व तनाव सहित अन्य बहुत प्रकार के संकटों में लाभ मिलता है।
Aditya Hridaya Stotra PDF Gujarati
ધ્યાનમ્
નમસ્સવિત્રે જગદેક ચક્ષુસે
જગત્પ્રસૂતિ સ્થિતિ નાશહેતવે
ત્રયીમયાય ત્રિગુણાત્મ ધારિણે
વિરિંચિ નારાયણ શંકરાત્મને
તતો યુદ્ધ પરિશ્રાંતં સમરે ચિંતયા સ્થિતમ્ |
રાવણં ચાગ્રતો દૃષ્ટ્વા યુદ્ધાય સમુપસ્થિતમ્ ‖ 1 ‖
દૈવતૈશ્ચ સમાગમ્ય દ્રષ્ટુમભ્યાગતો રણમ્ |
ઉપાગમ્યા-બ્રવીદ્રામં અગસ્ત્યો ભગવાન્ ઋષિઃ ‖ 2 ‖
રામ રામ મહાબાહો શૃણુ ગુહ્યં સનાતનમ્ |
યેન સર્વાનરીન્ વત્સ સમરે વિજયિષ્યસિ ‖ 3 ‖
આદિત્ય હૃદયં પુણ્યં સર્વશત્રુ વિનાશનમ્ |
જયાવહં જપેન્નિત્યં અક્ષય્યં પરમં શિવમ્ ‖ 4 ‖
સર્વમંગળ માંગળ્યં સર્વ પાપ પ્રણાશનમ્ |
ચિંતાશોક પ્રશમનં આયુર્વર્ધન મુત્તમમ્ ‖ 5 ‖
રશ્મિમંતં સમુદ્યંતં દેવાસુર નમસ્કૃતમ્ |
પૂજયસ્વ વિવસ્વંતં ભાસ્કરં ભુવનેશ્વરમ્ ‖ 6 ‖
સર્વદેવાત્મકો હ્યેષ તેજસ્વી રશ્મિભાવનઃ |
એષ દેવાસુર ગણાન્ લોકાન્ પાતિ ગભસ્તિભિઃ ‖ 7 ‖
એષ બ્રહ્મા ચ વિષ્ણુશ્ચ શિવઃ સ્કંદઃ પ્રજાપતિઃ |
મહેંદ્રો ધનદઃ કાલો યમઃ સોમો હ્યપાં પતિઃ ‖ 8 ‖
પિતરો વસવઃ સાધ્યા હ્યશ્વિનૌ મરુતો મનુઃ |
વાયુર્વહ્નિઃ પ્રજાપ્રાણઃ ઋતુકર્તા પ્રભાકરઃ ‖ 9 ‖
આદિત્યઃ સવિતા સૂર્યઃ ખગઃ પૂષા ગભસ્તિમાન્ |
સુવર્ણસદૃશો ભાનુઃ હિરણ્યરેતા દિવાકરઃ ‖ 10 ‖
હરિદશ્વઃ સહસ્રાર્ચિઃ સપ્તસપ્તિ-ર્મરીચિમાન્ |
તિમિરોન્મથનઃ શંભુઃ ત્વષ્ટા માર્તાંડકોંઽશુમાન્ ‖ 11 ‖
હિરણ્યગર્ભઃ શિશિરઃ તપનો ભાસ્કરો રવિઃ |
અગ્નિગર્ભોઽદિતેઃ પુત્રઃ શંખઃ શિશિરનાશનઃ ‖ 12 ‖
વ્યોમનાથ સ્તમોભેદી ઋગ્યજુઃસામ-પારગઃ |
ઘ્નવૃષ્ટિ રપાં મિત્રો વિંધ્યવીથી પ્લવંગમઃ ‖ 13 ‖
આતપી મંડલી મૃત્યુઃ પિંગળઃ સર્વતાપનઃ |
કવિર્વિશ્વો મહાતેજા રક્તઃ સર્વભવોદ્ભવઃ ‖ 14 ‖
નક્ષત્ર ગ્રહ તારાણાં અધિપો વિશ્વભાવનઃ |
તેજસામપિ તેજસ્વી દ્વાદશાત્મન્-નમોઽસ્તુ તે ‖ 15 ‖
નમઃ પૂર્વાય ગિરયે પશ્ચિમાયાદ્રયે નમઃ |
જ્યોતિર્ગણાનાં પતયે દિનાધિપતયે નમઃ ‖ 16 ‖
જયાય જયભદ્રાય હર્યશ્વાય નમો નમઃ |
નમો નમઃ સહસ્રાંશો આદિત્યાય નમો નમઃ ‖ 17 ‖
નમ ઉગ્રાય વીરાય સારંગાય નમો નમઃ |
નમઃ પદ્મપ્રબોધાય માર્તાંડાય નમો નમઃ ‖ 18 ‖
બ્રહ્મેશાનાચ્યુતેશાય સૂર્યાયાદિત્ય-વર્ચસે |
ભાસ્વતે સર્વભક્ષાય રૌદ્રાય વપુષે નમઃ ‖ 19 ‖
તમોઘ્નાય હિમઘ્નાય શત્રુઘ્નાયા મિતાત્મને |
કૃતઘ્નઘાય દેવાય જ્યોતિષાં પતયે નમઃ ‖ 20 ‖
તપ્ત ચામીકરાભાય વહ્નયે વિશ્વકર્મણે |
નમસ્તમોઽભિ નિઘ્નાય રુચયે લોકસાક્ષિણે ‖ 21 ‖
નાશયત્યેષ વૈ ભૂતં તદેવ સૃજતિ પ્રભુઃ |
પાયત્યેષ તપત્યેષ વર્ષત્યેષ ગભસ્તિભિઃ ‖ 22 ‖
એષ સુપ્તેષુ જાગર્તિ ભૂતેષુ પરિનિષ્ઠિતઃ |
એષ એવાગ્નિહોત્રં ચ ફલં ચૈવાગ્નિ હોત્રિણામ્ ‖ 23 ‖
વેદાશ્ચ ક્રતવશ્ચૈવ ક્રતૂનાં ફલમેવ ચ |
યાનિ કૃત્યાનિ લોકેષુ સર્વ એષ રવિઃ પ્રભુઃ ‖ 24 ‖
ફલશ્રુતિઃ
એન માપત્સુ કૃચ્છ્રેષુ કાંતારેષુ ભયેષુ ચ |
કીર્તયન્ પુરુષઃ કશ્ચિન્-નાવશીદતિ રાઘ્વ ‖ 25 ‖
પૂજયસ્વૈન મેકાગ્રો દેવદેવં જગત્પતિમ્ |
એતત્ ત્રિગુણિતં જપ્ત્વા યુદ્ધેષુ વિજયિષ્યસિ ‖ 26 ‖
અસ્મિન્ ક્ષણે મહાબાહો રાવણં ત્વં વધિષ્યસિ |
એવમુક્ત્વા તદાગસ્ત્યો જગામ ચ યથાગતમ્ ‖ 27 ‖
એતચ્છ્રુત્વા મહાતેજાઃ નષ્ટશોકોઽભવત્-તદા |
ધારયામાસ સુપ્રીતો રાઘ્વઃ પ્રયતાત્મવાન્ ‖ 28 ‖
આદિત્યં પ્રેક્ષ્ય જપ્ત્વા તુ પરં હર્ષમવાપ્તવાન્ |
ત્રિરાચમ્ય શુચિર્ભૂત્વા ધનુરાદાય વીર્યવાન્ ‖ 29 ‖
રાવણં પ્રેક્ષ્ય હૃષ્ટાત્મા યુદ્ધાય સમુપાગમત્ |
સર્વયત્નેન મહતા વધે તસ્ય ધૃતોઽભવત્ ‖ 30 ‖
અધ રવિરવદન્-નિરીક્ષ્ય રામં મુદિતમનાઃ પરમં પ્રહૃષ્યમાણઃ |
નિશિચરપતિ સંક્ષયં વિદિત્વા સુરગણ મધ્યગતો વચસ્ત્વરેતિ ‖ 31 ‖
ઇત્યાર્ષે શ્રીમદ્રામાયણે વાલ્મિકીયે આદિકાવ્યે યુદ્દકાંડે સપ્તોત્તર શતતમઃ સર્ગઃ ‖
Aditya Hridaya Stotra PDF Hindi Anuvad
आदित्य हृदय स्तोत्र Hindi
- उधर श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े हुए थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया।
- यह देख भगवान् अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।
- सबके ह्रदय में रमन करने वाले महाबाहो राम! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो! वत्स! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे ।
- इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है ‘आदित्यहृदय’ । यह परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय कि प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है।
- सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।
- भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित हैं । ये नित्य उदय होने वाले, देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान नाम से प्रसिद्द, प्रभा का विस्तार करने वाले और संसार के स्वामी हैं । तुम इनका रश्मिमंते नमः, समुद्यन्ते नमः, देवासुरनमस्कृताये नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराये नमः इन मन्त्रों के द्वारा पूजन करो।
- संपूर्ण देवता इन्ही के स्वरुप हैं । ये तेज़ की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं । ये अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित समस्त लोकों का पालन करने वाले हैं ।
- भगवान सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, महेंद्र, कुबेर, काल, यम, सोम एवं वरुण आदि में भी प्रचलित हैं।
- ये ही ब्रह्मा, विष्णु शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर , वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रकाश के पुंज हैं ।
- इनके नाम हैं आदित्य(अदितिपुत्र), सविता(जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य(सर्वव्यापक), खग, पूषा(पोषण करने वाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश्य, भानु(प्रकाशक), हिरण्यरेता(ब्रह्मांड कि उत्पत्ति के बीज), दिवाकर(रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले),
- हरिदश्व, सहस्रार्चि (हज़ारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति(सात घोड़ों वाले), मरीचिमान(किरणों से सुशोभित), तिमिरोमंथन(अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू, त्वष्टा, मार्तण्डक(ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान,
- हिरण्यगर्भ(ब्रह्मा), शिशिर(स्वभाव से ही सुख प्रदान करने वाले), तपन(गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर, रवि, अग्निगर्भ(अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख, शिशिरनाशन(शीत का नाश करने वाले),
- व्योमनाथ(आकाश के स्वामी), तमभेदी, ऋग, यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विंध्यवीथिप्लवंगम (आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले),
- आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल(भूरे रंग वाले), सर्वतापन(सबको ताप देने वाले), कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव (सबकी उत्पत्ति के कारण),
- नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन(जगत कि रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा हैं। इन सभी नामो से प्रसिद्द सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है।
- पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है । ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।
- आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य! आपको बारम्बार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से भी प्रसिद्द हैं, आपको नमस्कार है।
- उग्र, वीर, और सारंग सूर्यदेव को नमस्कार है । कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है।
- आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है । सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।
- आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं । आपका स्वरुप अप्रमेय है । आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, संपूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।
- आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरी और विश्वकर्मा हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है।
- रघुनन्दन! ये भगवान् सूर्य ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं । ये अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा करते हैं।
- ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं । ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।
- वेदों, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। संपूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं।
- राघव! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।
- इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर कि पूजा करो । इस आदित्यहृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।
- महाबाहो ! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे। यह कहकर अगस्त्यजी जैसे आये थे वैसे ही चले गए।
- उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया।
- और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की और देखते हुए इसका तीन बार जप किया । इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ । फिर परम पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठाकर
- रावण की और देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढे। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।
- उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा – ‘रघुनन्दन! अब जल्दी करो’ ।
Aditya Hridaya Stotra PDF English
Tato yuddha parishrantam samare chintaya sthitam |
Ravanam chagrato drishtva yuddhaya samupasthitam || 1
Daiva taishcha samagamya drashtu mabhya gato ranam |
Upagamya bravidramam agastyo bhagavan rishihi || 2
Rama rama mahabaho shrinu guhyam sanatanam |
Yena sarvanarin vatsa samare vijayishyasi || 3
Aditya-hridayam punyam sarva shatru-vinashanam |
Jayavaham japen-nityam akshayyam paramam shivam || 4
Sarvamangala-mangalyam sarva papa pranashanam |
Chintashoka-prashamanam ayurvardhana-muttamam || 5
Rashmi mantam samudyantam devasura-namaskritam |
Pujayasva vivasvantam bhaskaram bhuvaneshvaram || 6
Sarva devatmako hyesha tejasvi rashmi-bhavanah |
Esha devasura gananlokan pati gabhastibhih || 7
Esha brahma cha vishnush cha shivah skandah prajapatihi |
Mahendro dhanadah kalo yamah somo hyapam patihi || 8
Pitaro vasavah sadhya hyashvinau maruto manuh |
Vayurvahnih praja-prana ritukarta prabhakarah || 9
Adityah savita suryah khagah pusha gabhastiman |
Suvarnasadrisho bhanur-hiranyareta divakarah || 10
Haridashvah sahasrarchih saptasapti-marichiman |
Timironmathanah shambhu-stvashta martanda amshuman || 11
Hiranyagarbhah shishira stapano bhaskaro ravihi |
Agni garbho’diteh putrah shankhah shishira nashanaha || 12
vyomanathastamobhedi rigyajussamaparagaha |
Ghanavrishtirapam mitro vindhya-vithiplavangamaha || 13
Atapi mandali mrityuh pingalah sarvatapanaha |
Kavirvishvo mahatejah raktah sarva bhavodbhavaha || 14
Nakshatra grahataranam-adhipo vishva-bhavanah |
Tejasamapi tejasvi dvadashatman namo’stu te || 15
Namah purvaya giraye pashchimayadraye namah|
Jyotirgananam pataye dinaadhipataye namah || 16
Jayaya jaya bhadraya haryashvaya namo namah |
Namo namah sahasramsho adityaya namo namah || 17
Nama ugraya viraya sarangaya namo namah |
Namah padma prabodhaya martandaya namo namah || 18
Brahmeshanachyuteshaya suryayadityavarchase |
Bhasvate sarva bhakshaya raudraya vapushe namaha || 19
Tamoghnaya himaghnaya shatrughnayamitatmane |
Kritaghnaghnaya devaya jyotisham pataye namaha || 20
Taptacami karabhaya vahnaye vishvakarmane |
Namastamo’bhinighnaya ravaye (rucaye) lokasakshine || 21
Nashayat yesha vai bhutam tadeva srijati prabhuh|
Payatyesha tapatyesha varshatyesha gabhastibhih || 22
Esha supteshu jagarti bhuteshu parinishthitaha |
Esha evagnihotram cha phalam chaivagnihotrinam || 23
Vedashcha kratavashcaiva kratunam phalam eva cha |
Yani krityani lokeshu sarva esha ravih prabhuh || 24
Ena-mapatsu krichchreshu kantareshu bhayeshu cha |
Kirtayan purushah kashchinnavasidati raghava || 25
Pujayasvaina-mekagro devadevam jagatpatim |
Etat trigunitam japtva yuddheshu vijayishyasi || 26
Asmin kshane mahabaho ravanam tvam vadhishyasi |
Evamuktva tada’gastyo jagama cha yathagatam || 27
Etachchrutva mahateja nashtashoko’bhavattada |
Dharayamasa suprito raghavah prayatatmavan || 28
Adityam prekshya japtva tu param harshamavaptavan |
Trirachamya shuchirbhutva dhanuradaya viryavan || 29
Ravanam prekshya hrishtatma yuddhaya samupagamat |
Sarvayatnena mahata vadhe tasya dhrito’bhavat || 30
Atha ravi-ravadan-nirikshya ramam mudita manah paramam prahrishyamanaha |
nishicharapati-sankshayam viditva suragana-madhyagato vachastvareti || 31
Aditya Hridaya Stotra PDF Sanskrit
आदित्य हृदय स्तोत्र संस्कृत
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: ।
एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: ।
महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: ।
वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: ।
अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:।
कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: ।
नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ।
नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् ।
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥
धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥
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