भगवद गीता १८ अध्याय इन हिंदी पीडीएफ |
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PDF Name | Bhagvad Geeta 18 Adhyay In Hindi PDF |
PDF Size | |
Pages | |
Language | Hindi |
Categories | Bhagvad Geeta Books |
Source | Bhagvad Geeta Books |
PDF Download Link | Given Below |
Bhagvad Geeta 18 Adhyay In Hindi PDF Download Link Is Given Below ( भगवद गीता १८ अध्याय इन हिंदी पीडीएफ का डाउनलोड लिंक निचे दिया गया है. )
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Bhagvad Geeta 18 Adhyay Sort Details |
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भगवद गीता में कुल 18 अध्याय है और ये 18 वा अध्याय अंतिम है | इस 18 वे अध्याय को मोक्ष सन्यास योग के नामसे भगवद गीतामे नवाजा गया है | हमारे द्वारा भगवद गीता के 18 वे अध्याय यानि की मोक्ष सन्यास योग की विस्तृत जानकारी इस पोस्ट में दी गई है | जिसमे इस 18 वे अध्याय के श्लोक और सभी श्लोक का भावार्थ हिंदी में दिया गया है | हमारे द्वारा इस अध्याय को लम्बा न करते हुए पाठक का टाइम न बिगड़े और उसे इस अध्याय में जो उपयोगी है वही पढने को मिले एसा प्रयाश किया गया है और इस भावार्थ की भगवद गीता १८ अध्याय इन हिंदी पीडीएफ भी दी गयी है जिसे पाठक डाउनलोड कर शकता है | तो चलिए जानते है भगवद गीता के 18 वे अध्याय यानि की मोक्ष सन्यास योग को | | ||
भगवद गीता १८ अध्याय इन हिंदी |
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अर्जुन बोले- हे महाबाहो! हे अन्तर्यामिन्! हे वासुदेव! मैं संन्यास और त्याग के तत्व को पृथक्-पृथक् जानना चाहता हूँ ৷৷18.1॥
श्री भगवान बोले- कितने ही पण्डितजन तो काम्य कर्मों के (स्त्री, पुत्र और धन आदि प्रिय वस्तुओं की प्राप्ति के लिए तथा रोग-संकटादि की निवृत्ति के लिए जो यज्ञ, दान, तप और उपासना आदि कर्म किए जाते हैं, उनका नाम काम्यकर्म है।) त्याग को संन्यास समझते हैं तथा दूसरे विचारकुशल पुरुष सब कर्मों के फल के त्याग को (ईश्वर की भक्ति, देवताओं का पूजन, माता-पितादि गुरुजनों की सेवा, यज्ञ, दान और तप तथा वर्णाश्रम के अनुसार आजीविका द्वारा गृहस्थ का निर्वाह एवं शरीर संबंधी खान-पान इत्यादि जितने कर्तव्यकर्म हैं, उन सबमें इस लोक और परलोक की सम्पूर्ण कामनाओं के त्याग का नाम सब कर्मों के फल का त्याग है) त्याग कहते हैं | कई एक विद्वान ऐसा कहते हैं कि कर्ममात्र दोषयुक्त हैं, इसलिए त्यागने के योग्य हैं और दूसरे विद्वान यह कहते हैं कि यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्यागने योग्य नहीं हैं हे पुरुषश्रेष्ठ अर्जुन ! संन्यास और त्याग, इन दोनों में से पहले त्याग के विषय में तू मेरा निश्चय सुन। क्योंकि त्याग सात्विक, राजस और तामस भेद से तीन प्रकार का कहा गया है ৷ यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्याग करने के योग्य नहीं है, बल्कि वह तो अवश्य कर्तव्य है, क्योंकि यज्ञ, दान और तप -ये तीनों ही कर्म बुद्धिमान पुरुषों को (वह मनुष्य बुद्धिमान है, जो फल और आसक्ति को त्याग कर केवल भगवदर्थ कर्म करता है।) पवित्र करने वाले हैं ৷ इसलिए हे पार्थ! इन यज्ञ, दान और तपरूप कर्मों को तथा और भी सम्पूर्ण कर्तव्यकर्मों को आसक्ति और फलों का त्याग करके अवश्य करना चाहिए, यह मेरा निश्चय किया हुआ उत्तम मत है ৷ जो सुख विषय और इंद्रियों के संयोग से होता है, वह पहले- भोगकाल में अमृत के तुल्य प्रतीत होने पर भी परिणाम में विष के तुल्य (बल, वीर्य, बुद्धि, धन, उत्साह और परलोक का नाश होने से विषय और इंद्रियों के संयोग से होने वाले सुख को ‘परिणाम में विष के तुल्य’ कहा है) है इसलिए वह सुख राजस कहा गया है ৷ जो सुख भोगकाल में तथा परिणाम में भी आत्मा को मोहित करने वाला है, वह निद्रा, आलस्य और प्रमाद से उत्पन्न सुख तामस कहा गया है ৷ ज्यादा पढने के लिए निचे दी गई pdf को डाउनलोड करे….. |
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Bhagvad Geeta 18 Adhyay In Hindi PDF DOWNLOAD |
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Bhagvad Geeta 18 Adhyay In Hindi PDF Download Link Is Given Below ( भगवद गीता १८ अध्याय इन हिंदी पीडीएफ का डाउनलोड लिंक निचे दिया गया है. लाल कलर के डाउनलोड बटन पर क्लीक करके डाउनलोड कर ले | ) | ||